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Tuesday, November 30, 2021

शिलालेख

कांत विरहणीअभागिनी दुखियारी जननी,

देखती रही एक युग राह पुत्र की दिवा-रजनी 

पति या पुत्र कोई  लौटाचंद्रभागा ने सह लिया,

कथा मन कीशिला ने धरा को बांध लिया 

दीर्घ सांस का हर पत्ता झाड़ में सहता गुरु भार,

आज वेदना का हो रहा कण-कण में संचार 

जिन आंखो में खारे आंसुओं का सागर हो लहराता,

हंसी चुरा कर जिनकी यह शिला-फूल मुस्काता 

जिनके मन का मेरु अकातर कितना देता ढाल,

चंद्रभागा पर यहां बिछा कितना रेणु का जाल 

विस्मृत है वे आज तक उपेक्षा में दबे हुए,

कोई भी जानता नहींवे धुल में कहीं खो गए  

राजसी विलास मेंकिसी शौकनी अजीब से ख़याल में

नरसिंह नरेश डूबे हैकोणार्क के सवाल में  

आज नरेश कीर्तिमय कला के बैठे शिखर पर

कोटि-कोटि आत्मा याहं डूबती सागर अतल में 

कोणार्क के दर्शन कर बंधु तुम मुग्ध होते रहे

स्वगत ही ‘धन्य नरसिंह देव’ सदा तुम सदा कहते रहे  

किंतु मैं देखती बंधुचंद्रभागा सिकता बेला में

आज मैं सुन रही ध्वनि कोणार्क की हर शिला में 

बेशुमार अश्रु आंख सेह्रदय के तपते उच्छवास

जिनकी ख़ातिर भरी है शिलापद्म में यह सुवास  

नरसिंह देव जाते मन के किसी कोण आनूकोण में

पहले प्रणाम करती शिल्पीश्रमिक की चरण में  

इतिहास लिखता नहीं श्रम कीस्वेद की कोई कहानी

ह्रदय मंदिर में लिखा है नामऔर उनकी करणी | 

हर शिला पर आंक गएवे कला का शतदल

महाकाल पर अमिट जोप्रणाम उनके चरणतल 


Source ~ कोणार्क 

लेखिक़ा ~ प्रतिभा राय

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